मेरी प्रथम कविता
:-शालू 'अनंत'
शेखर
तुम्हारा नाम बड़े बड़े अक्षरो में,
उस शून्य आकाश में मैं अंकित करने जा रही हूँ,
जिसे अब तक किसी पुरुष के स्पर्श ने स्याह नहीं किया था।
तुम्हारा स्वप्न में आना कोई बहाना था,
कि था एक नए आगाज़ की दस्तख,
जो संकेत करता है,
कि अब तक जिसे अपनाया वह महज़ एक बाहरी चोगा था,
जिसे उतार फैकना था अब,
तोड़ना था उस कारा को
जो बांधे है अपने अंदर समर्पण, त्याग, तपस्या, बलिदान और न जाने क्या क्या..
हाँ माना तुमने चूमा था शशि का मुख,
पर मुझे इससे इर्ष्या नहीं,
माना तुम शशि की मृत्यु के बाद भी नहीं आओगे मेरे पास
पर फिर भी मैने तुम्हें और तुमने मुझे अपनाया है
आज रात ही,
क्योंकि तुम इंसान तो हो नहीं,
हो एक विचारधारा
जो शायद अंशतः मेरे भीतर जागा है,
नहीं नहीं
इसका अर्थ यह मत लेना की मै करूँगी विद्रोह
मै हूँ स्वच्छंद
पर नहीं हूँ विद्रोही
मै हूँ एक स्त्री
जिसने साहस किया है तुमसे प्रेम करने का..
शीर्षक अभी सोचा नहीं है, शीर्षक के लिए आपके सुझाव आमंत्रित है.
कुछ बात इस कविता की पृष्ठभूमि पर कर लू..
शेखर:एक जीवनी मेरे सबसे प्रिय और हिंदी जगत के सूर्य रूपी दैदिप्यमान सचिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा रचित एक बहु-चर्चित उपन्यास है.
कल रात शेखर के बारे में उसकी विचारधारा के बारे में सोचते सोचते कब नींद आ गई पता नहीं चला. और फिर स्वप्न में शेखर का आना मुझे एक ही घंटे में जगा गया की उसके बाद नींद आई ही नहीं.. तभी मन के किसी कोने से इस कविता की प्रारंभिक चार लाइन निकली.
फिर क्या था पूरी कविता तैयार हो गई,.
जरूर बताये की कैसी लगी मेरी यह कविता..