1. संस्कृत के प्रमुख काव्यशास्त्री
प्रमुख काव्यशास्त्री
संस्कृत काव्यशास्त्र की जो परंपरा भरतमुनि से शुरू होती है वह आचार्य पंडितराज जगन्नाथ तक चलती है. लगभग डेढ़-दो सहस्रा वर्षो का यह शास्त्रीय साहित्य अपनी व्यापक विषय- सामग्री, अपूर्व एवं तर्क-सम्मत विवेचन-पद्दति और अधिकांशतः प्रौढ़ एवं गंभीर शैली के कारण, तथा विशेषतः नूतन मान्यताओं के प्रस्तुत करने के बल पर भारतीय वाङ्मय में अपना विशिष्ट स्थान रचता है.
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2. काव्य हेतु
काव्य मानव जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि है। प्रत्येक व्यक्ति इसकी रचना नहीं
कर सकता। जीवन के उतार-चढ़ावों का अनुभव सभी करते हैं, प्रकृति के रंग में
रूपों को भी सभी देखते हैं, हर्ष के समय उल्लास और विषाद के समय अवसाद की
रेखाएं भी सार्व साधारण के मुख्य दृष्टिगोचर होती है। किन्तु इन सब
अनुभूतियों को अपने हृदयपटल से काव्य-फलक पर यथावत प्रतिबिंबित कर देना सभी
के सामर्थ्य की बात नहीं, तब वह कौन से उपकरण हैं, जिनके बल से काव्य का
निर्माण होता है?
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काव्य जीवन की अभिव्यक्ति है। जीवन से साहित्य का अटूट संबंध है अतः जीवन-प्रेरणाएँ ही काव्य प्रेरणाएँ हैं। जीवन के आदर्श ही साहित्य/काव्य के आदर्श और प्रयोजन है। काव्य प्रयोजन का तात्पर्य है 'काव्य रचना का उद्देश्य'। वस्तुतः काव्य प्रयोजन काव्य प्रेरणा से अलग है क्योंकि काव्य प्रेरणा का अभिप्राय है काव्य की रचना के लिए प्रेरित करने वाले तत्व जबकि काव्य प्रयोजन का अभिप्राय है काव्य रचना के अनंतर प्राप्त होने वाले लाभ।
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