Monday, 12 February 2018

लोंजाइनस का औदात्य सिद्धांत (भाग-2)

लोंजाइनस ने उदात्त के सम्बन्ध में उन तत्वों की भी चर्चा की है जो औदात्य के विरोधी है। इस प्रकार उदात्त के स्वरूप विवेचन के तीन तत्व हो जाते है:- 
१) अंतरंग तत्व:- उड़ात विचारों या विषय की गरिमा- उनके अनुसार उस कवि की कृति महान नहीं हो सकती जिसमे महान धारणाओं की क्षमता नहीं है। कवि को महान बनाने के लिए अपनी आत्मा में उदात्त विचारो का पोषण करना चाहिए। उन्होंने दृष्टांत देते हुए स्पष्ट लिखा है, ''यह संभव नहीं की जीवन-भर शूद्र उद्देश्यों और विचारों में ग्रस्त व्यक्ति कोई स्तुत्य एवं अमर रचना कर सके।' 'महान शब्द उन्हीं के मुख से निश्रित होता है जिनके विचार गंभीर और महान हो।''

Friday, 2 February 2018

लोंजाइनस का औदात्य सिद्धांत (भाग-1)


 जिस प्रकार भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के स्वरूप और उसकी आत्मा को लेकर विभिन्न मतों का प्रतिपादन हुआ है उसी प्रकार पाश्चात्य आलोचना के क्षेत्र में विभिन्न युगों में विभिन्न चिंतकों ने काव्य साहित्य के मूल तत्व की खोज की है।
प्लेटो ने अनुकरण को साहित्य का मूल तत्व माना। इसका पल्लवन अरस्तू ने अपनी दृष्टि से किया और विरेचन को साहित्य का उद्देश्य स्वीकार किया। इसी प्रकार लोंजाइनस का औदात्य सिद्धांत है। इस सिद्धांत के द्वारा उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कोई भी कलाकृति या काव्यकृति उदात्त तत्व के बिना श्रेष्ठ रचना नही हो सकती है। श्रेष्ठ वही है जिसमें रचयिता का गहन चिंतन और अनुभूतियाँ रही है। रचनाकार का यह अनुभूति तत्व अपनी महानता, उदात्तता, भव्यता या गरिमा के कारण रचना को महान बनाता है।