- शालू 'अनंत'
Bhaag milkha Bhaag, Airlift, Neerja, Raid आदि कई फिल्मे हमारे Bollywood जगत में अपना नाम लिखा चुकी है जो की किसी सत्य व्यक्ति या घटना पर आधारित है. और अब आई है 'राज़ी(Raazi)' जिसमे मुख्य भूमिका में Highway और Udta Punjab जैसी फिल्मों में अपना अभिनय कौशल दिखने वाली आलिया भट्ट हैं.
यह कहानी है एक सीक्रेट एजेंट की जो न केवल अपने मुल्क के लिए पकिस्तान जाकर रहती है बल्कि अपना जिस्म भी मुल्क के लिए बलिदान कर देती है. कहानी बता कर समय नष्ट नहीं करूंगी वह तो आप सब देख ही लेंगे. मैं यहाँ बात करूंगी फिल्मी के मुख्य मुख्य बातों पर.
यह कहानी है देश-भक्ति की. पहले बात करते हैं भक्ति पर. भक्ति जन्म देती है 'स्व' की भावना को, जो भी 'स्व' से परे का है उसे वह नकारती है, उससे क्रूरता का भाव जागृत होता है, अपनी वस्तु या उस प्रिय चीज के खोने या ख़त्म होने का डर लगा रहता है, तथा जिससे भी उसे खतरा होता है उसके प्रति घृणा का भाव जागृत करती है. इसलिए भक्ति और आध्यात्मिकता में अंतर है. अब आती है देश की बात. देश पर कोई खतरा हो चाहे वह किसी भी कारण हो उस देश के प्रति श्रद्धा रखने वालों को वह सहन नहीं होती. और अगर बात पड़ोसी मुल्क से होने वाले खतरे की हो तो हर देश इस खतरे से बचने की कोशिश करता है. इसके लिए उसे कोई भी क्रूर कदम उठाना पड़े वह पीछे नहीं हटता क्योकि वह जानता है कि पडोसी मुल्क भी हर कोशिश करेगा उसे नुक्सान पहुंचने की.
तो इस तरह देश भक्तों में अपने मुल्क के प्रति भक्ति भाव को समझा जा सकता है. यह किसी भी हालत में गलत नहीं कहा जा सकता क्योकि भौतिकवादी होना मनुष्य की प्रवृति है. इस फिल्म में आलिया के जरिये भी एक मिशन पूरा किया जाता है देश को बचने का. 1971 के युद्ध में विजय का जो मुख्य कारण था वह एक लड़की की साहसिक प्रतिभा और सब कुछ खोने के डर के परे की अनसुनी कहानी थी.
एक लड़की जो अभी पढाई कर रही है और नाजुक छुई मुई की तरह है वह अचानक अपने दादा, और अब्बा की तरह देश के लिए अपने जीवन को बलिदान करने के लिए तैयार हो जाती है, शादी करनी है एक पाकिस्तानी आदमी से ख़ुफ़िया जानकारियां निकलवाने के लिए. वह अपना जिस्म अपने मुल्क के लिए ऐसे इंसान को दे देती है जिससे ना कभी वो मिली और जो न ही उसके मुल्क का है. हलाकि बाद में उसे अपने शोहर से प्रेम हो जाता है. जिस लड़की ने कभी अपना खून भी निकलते हुए नहीं देखा उसे मुल्क की रक्षा के लिए 2 लोगों को मारना पड़ता है. सोचिये उसकी मनोदशा क्या होगी. कहानी इतने पर ही नहीं रूकती वह अपने शोहर को भी मरते हुए देखती है. अंत में वह अपनी कोख में पल रहे नवजीवन के लिए कहती है की 'अब मुझसे और क़त्ल नहीं होंगे' यह उस काम उम्र लड़की की मनोदशा का सटीक चित्रण करता है.
इसमें एक और बात पता चलती है. एक लड़की यह काम ज्यादा बखूबी से निभा सकती है बजाए एक लड़के के. ऐसा कहने की पीछे मेरा एक कारण है. लड़की घर भी सम्हालती है, वह किसी न किसी बहाने बाहर भी जाती है, बच्चों को गाने सीखने के बहाने ख़ुफ़िया जानकारियां भी निकालती है. और सबसे महत्वपूर्ण बात उसपर किसी को शक नहीं होता, शोहर को पता चलने के बाद भी वह उसे नुक्सान नहीं पहुँचता. अगर सेहमत(आलिया) की जगह कोई लड़का होता तो शायद कहानी और होती.
किसी भी फिल्म की जान उसके गानों को कहा जा सकता है. जो कमी फिल्म में रह जाती है उसे उस फिल्म के गाने पूरा कर देते हैं. इसमें तीन गानें हैं:- ऐ वतन, दिलबरों और राज़ी.
'राज़ी' गाने की बात करू तो वह एक प्रकार से प्रेरित करने वाला गाना है जैसे की 'brothers anthem', 'Get ready to fight' आदि. इस गाने की मुख्य लाइन जो मुझे लगी वह है 'राह सीधी है अगर दिल राज़ी है' और 'लगा दे दाँव पर दिल अगर दिल राज़ी है' यह लाइन हर सही काम के लिए प्रयोग किया जा सकता है. यह इस फिल्म का पहला गाना है. बाकी अर्थ आप निकाल सकते हैं.
दूसरा गाना हैं 'दिलबरों'. यह गाना कश्मीरी शादियों में बिदाई song के रूप में गया जाता है. इस गाने में पिता और पुत्री के सुन्दर रिश्ते की बात की जाती है, इसमें कुछ line जोड़ कर इसे इस फिल्म के हिसाब से बनाने की कोसिस की गई है. एक लड़की जो अपना घर और देश छोड़ कर जा रही है उसके मन के भाव इसमें दिखाए गया है. शुरू की तीन लाइन कश्मीरी भाषा में है जिसका भावार्थ यह है कि 'मैं आपकी प्यारी बिटिया हूँ, मेरी यहाँ से बिदाई कि जा रही है, मैं इस परिवार कि प्यारी बेटी हूँ.' एक बेटी जिसने बचपन से अपने पिता या भाई के आलावा किसी को नहीं जाना आज उसे किसी और के साथ भेजा जा रहा है ऐसी स्थिति में वह बेटी चाहती है कि उसे उस नए पुरुष के पास तक उसका पहला प्यार उसके पिता छोड़ कर आये. बेटी कि शादी कि तुलना फसलों से कि गई है जिससे जमीनी हकीकत का पता चलता है.
अंतिम गाना है 'ऐ वतन'. इस गाने में हमारे बचपन में सुने गए एक गाने कि कुछ पंक्तियाँ है 'लप्पे आती हैं दुआ बन के तमन्ना मेरी..' यह गाना अपने वतन कि याद, तरक्की, सलामती के लिए आलिया के द्वारा इस फिल्म में प्रयोग कि गई है. दरअसल इस गाने के बहाने वह अपने वतन से उसके हिफाजत करने के अपने उद्देश्य कि बात करती है. और इस गाने के दौरान वह अपने जासूसी काम को अनजान देती है.
अंत में बस इतना कहना चाहूंगी कि आज कल जिस प्रकार कि फिल्मों का दौर हिंदी सिनेमा जगत में चल रहा है उसमे ये reality based फिल्मे अपनी अलग जगह बना रही है. हाल ही में आयी 'Raid or Raazi' ये दोनों फिल्मे हिंदी जगत कि फिल्मों को अलग पहचान देती हैं हलाकि अंत में सेहमत(आलिया) अपने पति व अन्य कि मौत से टूट जाती है और आगे कभी इस और मुड़कर नहीं देखती फिर भी अपने बेटे को देश कि सेवा के लिए सेना में भर्ती कराती है जो कि उसके देश प्रेम को दर्शाता है. लगभग हर फिल्म का एक famous dialog होता है इसका भी एक dialog है 'वतन के आगे कुछ नहीं'..
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