होरेस, रोमन सभ्यता और संस्कृति के स्वर्ण युग के साहित्याकाश में चमकते सितारे हैं। समीक्षक के रूप में उनका उद्देश्य लैटिन साहित्य को यूनानी कवियों और समीक्षकों द्वारा स्थापित नियमों और सिद्धांतों के आधार पर ही अग्रसर करना था। रोमन साहित्य में होरेस का वही स्थान है जो ग्रीक साहित्य में अरस्तु का है।
Sunday, 28 January 2018
Thursday, 25 January 2018
अरस्तू का विरेचन सिद्धांत
अरस्तू ने 'विरेचन' शब्द का प्रयोग अपने काव्यशास्त्र के छठे अनुच्छेद के आरम्भ में त्रासदी की परिभाषा देते हुए, केवल एक बार किया है : ''त्रासदी किसी गंभीर स्वतः पूर्ण तथा निश्चित आयाम से युक्त कार्य की अनुकृति का नाम है, जिसका माध्यम नाटक के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न रूप में प्रयुक्त सभी प्रकार के आभरणों से अलंकृत भाषा होती है, जो समाख्यान रूप में न होकर कार्य-व्यापार रूप में होती है और जिसमे करुणा तथा त्रास के उद्रेक द्वारा इन मनोविकारों का उचित विरेचन किया जाता है।'' अरस्तू ने न तो 'विरेचन सिद्धांत' की कोई परिभाषा दी न ही उसकी व्याख्या की. 'विरेचन' का यूनानी अर्थ 'कैथार्सिस' है।
Sunday, 21 January 2018
अरस्तु का त्रासदी सिद्धांत
अरस्तु की काव्य विषयक मान्यताएँ मुख्य रूप से 'काव्यशास्त्र' में मिलती है. उन्होंने काव्य की रचना, संरचना और प्रभाव-तीनो पक्षों पर विचार किया है, किन्तु जितना विचार उन्होंने त्रासदी की संरचना पर किया, उतना किसी अन्य विषय पर नहीं. पश्चिम में त्रासदी का सर्वप्रथम विवेचन यूनान में हुआ. क्योंकि वहीं उनका सर्वप्रथम सर्वांगीण विकास हुआ.
Saturday, 20 January 2018
अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत
यूनानी भाषा में अरस्तु का वास्तविक नाम, अरिस्तोतेलेस है. उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी. वे अनेक विधाओं के आचार्य थे. अरस्तु ने काव्य-कला को राजनीति तथा नीतिशास्त्र की परिधि में न देखकर सौन्दर्यशास्त्री की दृष्टि से देखा और उन्होंने कविता को दार्शनिक, राजनीतिज्ञ तथा नीतिशास्त्री के अत्याचार से मुक्त किया.
Friday, 19 January 2018
प्लेटो व उनके सिद्धांत
प्लेटो पाश्चात्य काव्यशास्त्र के आदि आचार्य थे. वे मूलतः दार्शनिक थे . दर्शन के अतिरिक्त राजनीति, तर्कशास्त्र, साहित्य, समाजशास्त्र, शिक्षा आदि अनेक विषयों को उन्होंने अपनी मान्यताओं से प्रभावित किया था. प्लेटो सार्शनिक होते हुए भी कवि हृदय संपन्न थे. प्लेटो के गुरु सुकरात थे, प्लेटो पर उनका प्रभाव अत्यंत गंभीर था. प्लेटो की काव्यात्मक, भव्य, उदात्त शैली बताती है कि वे मूलतः कवि थे. किन्तु सुकरात के संपर्क में आने के बाद उन्होंने अपनी काव्य रचनाओं को नष्ट कर दिया.
Tuesday, 9 January 2018
पाश्चत्य काव्यशास्त्री (शुरुआत से..)
साहित्य चिंतन की पाश्चात्य परंपरा लगभग उतनी ही पुरानी है जितनी भारत की. पाश्चात्य काव्यशास्त्र मूलतः ग्रीक काव्यशास्त्र है. ग्रीक का ही दूसरा नाम यूनान है. यूरोप में व्यवस्थित काव्य-चिन्तन का आरम्भ प्लेटो से माना जाता है. प्लेटो से पूर्व ग्रीक काव्य-चिंतन में मुख्यतः तीन सिद्धांतों की उद्भावना हो चुकी थी- प्रेरणा का सिद्धांत, अनुकरण का सिद्धांत और विरेचन का सिद्धांत.
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