'पाताल लोक' एक ऐसी वेबशृंखला के रूप में उभरी है जो अनेक स्वतंत्र रचनात्मक संभावनाओं को अपने अंदर संजोये हुए है। यह महज एक जबरदस्त सस्पेंस रचने वाला क्राइम थ्रीलर नहीं है। अनेक ऐसे मुद्दे इसमें उजागर होते हैं जो आज के समाज की हकीकत हैं, फिर चाहे वह वर्ग, लिंग, जाति, सम्प्रदाय के आधार पर हो। इन समाजों के हाशिये पर धकेल दिए गए लोगों के निजी जटिल इतिहास का एक लेखा-जोखा देखने को मिल जाता है यहाँ।
रोजनामचा साहित्य
कुछ किताबों की, कुछ अपनी बातें...
Friday, 29 May 2020
स्वर्ग का द्वार पाताल लोक के रस्ते
'पाताल लोक' एक ऐसी वेबशृंखला के रूप में उभरी है जो अनेक स्वतंत्र रचनात्मक संभावनाओं को अपने अंदर संजोये हुए है। यह महज एक जबरदस्त सस्पेंस रचने वाला क्राइम थ्रीलर नहीं है। अनेक ऐसे मुद्दे इसमें उजागर होते हैं जो आज के समाज की हकीकत हैं, फिर चाहे वह वर्ग, लिंग, जाति, सम्प्रदाय के आधार पर हो। इन समाजों के हाशिये पर धकेल दिए गए लोगों के निजी जटिल इतिहास का एक लेखा-जोखा देखने को मिल जाता है यहाँ।
Saturday, 22 September 2018
स्वच्छता के सारे वादे झूठे साबित हो गए
-शालू 'अनंत'
Wednesday, 18 July 2018
एक साहित्यिक की डायरी (सड़क को लेकर एक बातचीत)
-शालू 'अनंत'
मस्तिष्क की दुकान में मनियारी के सामान से भी कही अधिक सामान मौजूद है। मनियारी मने किराने की दुकान। तो दिमाग एक ऐसा दुकान है जिसमे किराने की दुकान से भी अधिक सामान है। और अगर उन सामानों का प्रयोग न किया जाये तो वह केवल एक स्टोर रूम की तरह बनकर रह जाता है।
Thursday, 24 May 2018
Raazi Film की समीक्षा
- शालू 'अनंत'
Bhaag milkha Bhaag, Airlift, Neerja, Raid आदि कई फिल्मे हमारे Bollywood जगत में अपना नाम लिखा चुकी है जो की किसी सत्य व्यक्ति या घटना पर आधारित है. और अब आई है 'राज़ी(Raazi)' जिसमे मुख्य भूमिका में Highway और Udta Punjab जैसी फिल्मों में अपना अभिनय कौशल दिखने वाली आलिया भट्ट हैं.
Saturday, 10 March 2018
शेखर
मेरी प्रथम कविता
:-शालू 'अनंत'
शेखर
तुम्हारा नाम बड़े बड़े अक्षरो में,
उस शून्य आकाश में मैं अंकित करने जा रही हूँ,
जिसे अब तक किसी पुरुष के स्पर्श ने स्याह नहीं किया था।
तुम्हारा स्वप्न में आना कोई बहाना था,
कि था एक नए आगाज़ की दस्तख,
जो संकेत करता है,
कि अब तक जिसे अपनाया वह महज़ एक बाहरी चोगा था,
जिसे उतार फैकना था अब,
तोड़ना था उस कारा को
जो बांधे है अपने अंदर समर्पण, त्याग, तपस्या, बलिदान और न जाने क्या क्या..
हाँ माना तुमने चूमा था शशि का मुख,
पर मुझे इससे इर्ष्या नहीं,
माना तुम शशि की मृत्यु के बाद भी नहीं आओगे मेरे पास
पर फिर भी मैने तुम्हें और तुमने मुझे अपनाया है
आज रात ही,
क्योंकि तुम इंसान तो हो नहीं,
हो एक विचारधारा
जो शायद अंशतः मेरे भीतर जागा है,
नहीं नहीं
इसका अर्थ यह मत लेना की मै करूँगी विद्रोह
मै हूँ स्वच्छंद
पर नहीं हूँ विद्रोही
मै हूँ एक स्त्री
जिसने साहस किया है तुमसे प्रेम करने का..
शीर्षक अभी सोचा नहीं है, शीर्षक के लिए आपके सुझाव आमंत्रित है.
कुछ बात इस कविता की पृष्ठभूमि पर कर लू..
शेखर:एक जीवनी मेरे सबसे प्रिय और हिंदी जगत के सूर्य रूपी दैदिप्यमान सचिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा रचित एक बहु-चर्चित उपन्यास है.
कल रात शेखर के बारे में उसकी विचारधारा के बारे में सोचते सोचते कब नींद आ गई पता नहीं चला. और फिर स्वप्न में शेखर का आना मुझे एक ही घंटे में जगा गया की उसके बाद नींद आई ही नहीं.. तभी मन के किसी कोने से इस कविता की प्रारंभिक चार लाइन निकली.
फिर क्या था पूरी कविता तैयार हो गई,.
जरूर बताये की कैसी लगी मेरी यह कविता..
Monday, 12 February 2018
लोंजाइनस का औदात्य सिद्धांत (भाग-2)
लोंजाइनस ने उदात्त के सम्बन्ध में उन तत्वों की भी चर्चा की है जो औदात्य के विरोधी है। इस प्रकार उदात्त के स्वरूप विवेचन के तीन तत्व हो जाते है:-
१) अंतरंग तत्व:- उड़ात विचारों या विषय की गरिमा- उनके अनुसार उस कवि की कृति महान नहीं हो सकती जिसमे महान धारणाओं की क्षमता नहीं है। कवि को महान बनाने के लिए अपनी आत्मा में उदात्त विचारो का पोषण करना चाहिए। उन्होंने दृष्टांत देते हुए स्पष्ट लिखा है, ''यह संभव नहीं की जीवन-भर शूद्र उद्देश्यों और विचारों में ग्रस्त व्यक्ति कोई स्तुत्य एवं अमर रचना कर सके।' 'महान शब्द उन्हीं के मुख से निश्रित होता है जिनके विचार गंभीर और महान हो।''
१) अंतरंग तत्व:- उड़ात विचारों या विषय की गरिमा- उनके अनुसार उस कवि की कृति महान नहीं हो सकती जिसमे महान धारणाओं की क्षमता नहीं है। कवि को महान बनाने के लिए अपनी आत्मा में उदात्त विचारो का पोषण करना चाहिए। उन्होंने दृष्टांत देते हुए स्पष्ट लिखा है, ''यह संभव नहीं की जीवन-भर शूद्र उद्देश्यों और विचारों में ग्रस्त व्यक्ति कोई स्तुत्य एवं अमर रचना कर सके।' 'महान शब्द उन्हीं के मुख से निश्रित होता है जिनके विचार गंभीर और महान हो।''
Friday, 2 February 2018
लोंजाइनस का औदात्य सिद्धांत (भाग-1)
जिस प्रकार भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के स्वरूप और उसकी आत्मा को लेकर विभिन्न मतों का प्रतिपादन हुआ है उसी प्रकार पाश्चात्य आलोचना के क्षेत्र में विभिन्न युगों में विभिन्न चिंतकों ने काव्य साहित्य के मूल तत्व की खोज की है।
प्लेटो ने अनुकरण को साहित्य का मूल तत्व माना। इसका पल्लवन अरस्तू ने अपनी दृष्टि से किया और विरेचन को साहित्य का उद्देश्य स्वीकार किया। इसी प्रकार लोंजाइनस का औदात्य सिद्धांत है। इस सिद्धांत के द्वारा उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कोई भी कलाकृति या काव्यकृति उदात्त तत्व के बिना श्रेष्ठ रचना नही हो सकती है। श्रेष्ठ वही है जिसमें रचयिता का गहन चिंतन और अनुभूतियाँ रही है। रचनाकार का यह अनुभूति तत्व अपनी महानता, उदात्तता, भव्यता या गरिमा के कारण रचना को महान बनाता है।
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