Saturday, 22 September 2018

स्वच्छता के सारे वादे झूठे साबित हो गए

-शालू 'अनंत' 

स्वच्छता अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 को हमारे माननीय प्रधानमंत्री द्वारा किया गया। देश भर में स्वच्छता अभियान के कई नारे लगे, कई बाते हुई पर आज ये बातें केवल बातें ही जान पड़ रही है। इसकी कोई गिनती नहीं है की अब तक कितने लोगों की जान जा चुकी है सीवर में सफाई करने जाने से। स्वच्छता अभियान की बातें बेमानी सी जान पड़ती है जब अख़बारों में ये पढ़ने को मिलता है की 'दिल्ली : बिना सुरक्षा इंतजामों के सीवर में उतार दिया, पांच मजदूरों की मौत'। यह तो केवल एक खबर है, न जाने कितने लोग इसी हफ्ते देश-भर में मर चुके है। क्या उनकी गलती ये है की वो साफ़ कर रहे थे दूसरो की फैलाई गंदगी को? या फिर ये गलती है की वो सफाई कर्मचारी है और अपने परिवार के लिए रूपए कामना चाहते है यह काम करके क्योंकि कोई और काम नहीं है उनके पास।

Wednesday, 18 July 2018

एक साहित्यिक की डायरी (सड़क को लेकर एक बातचीत)

-शालू 'अनंत'


मस्तिष्क की दुकान में मनियारी के सामान से भी कही अधिक सामान मौजूद है। मनियारी मने किराने की दुकान। तो दिमाग एक ऐसा दुकान है जिसमे किराने की दुकान से भी अधिक सामान है। और अगर उन सामानों का प्रयोग न किया जाये तो वह केवल एक स्टोर रूम की तरह बनकर रह जाता है।

Thursday, 24 May 2018

Raazi Film की समीक्षा

- शालू 'अनंत'

Bhaag milkha Bhaag, Airlift, Neerja, Raid आदि कई फिल्मे हमारे Bollywood जगत में अपना नाम लिखा चुकी है जो की किसी सत्य व्यक्ति या घटना पर आधारित है. और अब आई है 'राज़ी(Raazi)' जिसमे मुख्य भूमिका में Highway और Udta Punjab जैसी फिल्मों में अपना अभिनय कौशल दिखने वाली आलिया भट्ट हैं.

Saturday, 10 March 2018

शेखर

मेरी प्रथम कविता 

:-शालू 'अनंत'


शेखर
तुम्हारा नाम बड़े बड़े अक्षरो में,
उस शून्य आकाश में मैं अंकित करने जा रही हूँ,
जिसे अब तक किसी पुरुष के स्पर्श ने स्याह नहीं किया था।


तुम्हारा स्वप्न में आना कोई बहाना था,
कि था एक नए आगाज़ की दस्तख,
जो संकेत करता है,
कि अब तक जिसे अपनाया वह महज़ एक बाहरी चोगा था,
जिसे उतार फैकना था अब,
तोड़ना था उस कारा को
जो बांधे है अपने अंदर समर्पण, त्याग, तपस्या, बलिदान और न जाने क्या क्या..


हाँ माना तुमने चूमा था शशि का मुख,
पर मुझे इससे इर्ष्या नहीं,
माना तुम शशि की मृत्यु के बाद भी नहीं आओगे मेरे पास
पर फिर भी मैने तुम्हें और तुमने मुझे अपनाया है
आज रात ही,
क्योंकि तुम इंसान तो हो नहीं,
हो एक विचारधारा
जो शायद अंशतः मेरे भीतर जागा है,

नहीं नहीं
इसका अर्थ यह मत लेना की मै करूँगी विद्रोह
मै हूँ स्वच्छंद
पर नहीं हूँ विद्रोही
मै हूँ एक स्त्री
जिसने साहस किया है तुमसे प्रेम करने का..





शीर्षक अभी सोचा नहीं है, शीर्षक के लिए आपके सुझाव आमंत्रित है.

कुछ बात इस कविता की पृष्ठभूमि पर कर लू..
शेखर:एक जीवनी मेरे सबसे प्रिय और हिंदी जगत के सूर्य रूपी दैदिप्यमान सचिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा रचित एक बहु-चर्चित उपन्यास है.
कल रात शेखर के बारे में उसकी विचारधारा के बारे में सोचते सोचते कब नींद आ गई पता नहीं चला. और फिर स्वप्न में शेखर का आना मुझे एक ही घंटे में जगा गया की उसके बाद नींद आई ही नहीं.. तभी मन के किसी कोने से इस कविता की प्रारंभिक चार लाइन निकली.
फिर क्या था पूरी कविता तैयार हो गई,.

जरूर बताये की कैसी लगी मेरी यह कविता..

Monday, 12 February 2018

लोंजाइनस का औदात्य सिद्धांत (भाग-2)

लोंजाइनस ने उदात्त के सम्बन्ध में उन तत्वों की भी चर्चा की है जो औदात्य के विरोधी है। इस प्रकार उदात्त के स्वरूप विवेचन के तीन तत्व हो जाते है:- 
१) अंतरंग तत्व:- उड़ात विचारों या विषय की गरिमा- उनके अनुसार उस कवि की कृति महान नहीं हो सकती जिसमे महान धारणाओं की क्षमता नहीं है। कवि को महान बनाने के लिए अपनी आत्मा में उदात्त विचारो का पोषण करना चाहिए। उन्होंने दृष्टांत देते हुए स्पष्ट लिखा है, ''यह संभव नहीं की जीवन-भर शूद्र उद्देश्यों और विचारों में ग्रस्त व्यक्ति कोई स्तुत्य एवं अमर रचना कर सके।' 'महान शब्द उन्हीं के मुख से निश्रित होता है जिनके विचार गंभीर और महान हो।''

Friday, 2 February 2018

लोंजाइनस का औदात्य सिद्धांत (भाग-1)


 जिस प्रकार भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के स्वरूप और उसकी आत्मा को लेकर विभिन्न मतों का प्रतिपादन हुआ है उसी प्रकार पाश्चात्य आलोचना के क्षेत्र में विभिन्न युगों में विभिन्न चिंतकों ने काव्य साहित्य के मूल तत्व की खोज की है।
प्लेटो ने अनुकरण को साहित्य का मूल तत्व माना। इसका पल्लवन अरस्तू ने अपनी दृष्टि से किया और विरेचन को साहित्य का उद्देश्य स्वीकार किया। इसी प्रकार लोंजाइनस का औदात्य सिद्धांत है। इस सिद्धांत के द्वारा उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कोई भी कलाकृति या काव्यकृति उदात्त तत्व के बिना श्रेष्ठ रचना नही हो सकती है। श्रेष्ठ वही है जिसमें रचयिता का गहन चिंतन और अनुभूतियाँ रही है। रचनाकार का यह अनुभूति तत्व अपनी महानता, उदात्तता, भव्यता या गरिमा के कारण रचना को महान बनाता है।

Sunday, 28 January 2018

होरेस का औचित्य सिद्धांत


होरेस, रोमन सभ्यता और संस्कृति के स्वर्ण युग के साहित्याकाश में चमकते सितारे हैं। समीक्षक के रूप में उनका उद्देश्य लैटिन साहित्य को यूनानी कवियों और समीक्षकों द्वारा स्थापित नियमों और सिद्धांतों के आधार पर ही अग्रसर करना था। रोमन साहित्य में होरेस का वही स्थान है जो ग्रीक साहित्य में अरस्तु का है।

Thursday, 25 January 2018

अरस्तू का विरेचन सिद्धांत


अरस्तू ने 'विरेचन' शब्द का प्रयोग अपने काव्यशास्त्र के छठे अनुच्छेद के आरम्भ में त्रासदी की परिभाषा देते हुए, केवल एक बार किया है : ''त्रासदी किसी गंभीर स्वतः पूर्ण तथा निश्चित आयाम से युक्त कार्य की अनुकृति का नाम है, जिसका माध्यम नाटक के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न रूप में प्रयुक्त सभी प्रकार के आभरणों से अलंकृत भाषा होती है, जो समाख्यान रूप में न होकर कार्य-व्यापार रूप में होती है और जिसमे करुणा तथा त्रास के उद्रेक द्वारा इन मनोविकारों का उचित विरेचन किया जाता है।'' अरस्तू ने न तो 'विरेचन सिद्धांत' की कोई परिभाषा दी न ही उसकी व्याख्या की. 'विरेचन' का यूनानी अर्थ 'कैथार्सिस' है।

Sunday, 21 January 2018

अरस्तु का त्रासदी सिद्धांत


अरस्तु की काव्य विषयक मान्यताएँ मुख्य रूप से 'काव्यशास्त्र' में मिलती है. उन्होंने काव्य की रचना, संरचना और प्रभाव-तीनो पक्षों पर विचार किया है, किन्तु जितना विचार उन्होंने त्रासदी की संरचना पर किया, उतना किसी अन्य विषय पर नहीं. पश्चिम में त्रासदी का सर्वप्रथम विवेचन यूनान में हुआ. क्योंकि वहीं उनका सर्वप्रथम सर्वांगीण विकास हुआ. 


Saturday, 20 January 2018

अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत


यूनानी भाषा में अरस्तु का वास्तविक नाम, अरिस्तोतेलेस है. उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी. वे अनेक विधाओं के आचार्य थे. अरस्तु ने काव्य-कला को राजनीति तथा नीतिशास्त्र की परिधि में न देखकर सौन्दर्यशास्त्री की दृष्टि से देखा और उन्होंने कविता को दार्शनिक, राजनीतिज्ञ तथा नीतिशास्त्री के अत्याचार से मुक्त किया.

Friday, 19 January 2018

प्लेटो व उनके सिद्धांत

प्लेटो पाश्चात्य काव्यशास्त्र के आदि आचार्य थे. वे मूलतः दार्शनिक थे . दर्शन के अतिरिक्त राजनीति, तर्कशास्त्र, साहित्य, समाजशास्त्र, शिक्षा आदि अनेक विषयों को उन्होंने अपनी मान्यताओं से प्रभावित किया था. प्लेटो सार्शनिक होते हुए भी कवि हृदय संपन्न थे. प्लेटो के गुरु सुकरात थे, प्लेटो पर उनका प्रभाव अत्यंत गंभीर था. प्लेटो की काव्यात्मक, भव्य, उदात्त शैली बताती है कि वे मूलतः कवि थे. किन्तु सुकरात के संपर्क में आने के बाद उन्होंने अपनी काव्य रचनाओं को नष्ट कर दिया.

Tuesday, 9 January 2018

पाश्चत्य काव्यशास्त्री (शुरुआत से..)

साहित्य चिंतन की पाश्चात्य परंपरा लगभग उतनी ही पुरानी है जितनी भारत की. पाश्चात्य काव्यशास्त्र मूलतः ग्रीक काव्यशास्त्र है. ग्रीक का ही दूसरा नाम यूनान है. यूरोप में व्यवस्थित काव्य-चिन्तन का आरम्भ प्लेटो से माना जाता है. प्लेटो से पूर्व ग्रीक काव्य-चिंतन में मुख्यतः तीन सिद्धांतों की उद्भावना हो चुकी थी- प्रेरणा का सिद्धांत, अनुकरण का सिद्धांत और विरेचन का सिद्धांत.